लेखनी प्रतियोगिता - दस्तक
दस्तक
जब जब भी दस्तक होती है,दरवाज़े पर,
हर बार यूं लगता है, तुम ही हो,
मगर किसी और को ही खड़ा पाते हैं,
तो अहसास होता है, बहुत नाराज़ हो,
चलो खत्म करो ये नाराज़गी,
थूक दो ना सारा गुस्सा,
पता नहीं कभी मिलेंगे
या बन जाएंगे हम,
तुम्हारी कहानी का हिस्सा,
अबकी बार, दस्तक दो कुछ इस तरह,
धुल जाए सारी शिकायतों का पिटारा,
हम भी संभल जाएं, वरना
रोता रह जाएगा ये, दिल बेचारा।।
प्रियंका वर्मा
21/3/23
Renu
23-Mar-2023 08:34 PM
👍👍💐
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अदिति झा
23-Mar-2023 07:48 AM
Nice 👍🏼
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ऋषभ दिव्येन्द्र
22-Mar-2023 07:27 PM
बढ़िया लिखा है आपने 👌👌
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